28 September, 2009

मारो 'हेलो' उसके साथ


अरे जूठ मूठ का चक्कर चलता हर सुबहो हर शाम,
जिस के सर पे आये मुसीबत ले लो उसका नाम
,
नाम भी ऐसा बीच बज़ार में आवे भारी दाम
,
पर मन मंदीर जो दीया जलावें खाली उसके ठाम
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


कबीर, मीरा की बातों को सुनी है कानों कान,
फ़कीर
, पीर या साधू बन गया आया जिसको ग्यान
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


जड़-चेतन में हरी बसा है, घूसा है डारी पान,
सोला बरसे सान आवें
, बीसें आवें वान
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


मूरत हो या पत्थर लालची सब पे माथा टेक,
जुल्फें तेरी सर हों
'जालिम' तेरी सुणे ना एक
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


घोड़ा बेचा, घोडी बेचीं मियाँ चला परदेस,
सात जनम के भरम में घूम के लौटे अपने देस
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


मुरख तू क्यों चीख चीख कर गावे उसके गान,
अंतर से अँधा हो उसको कभी आवे भान
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


गांजा पी के चल गीरनारी, मेरी बातें मान,
चल चल चल तू चलता चल बस आगे सीना तान
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


उसकी माया अलख जगावे, लेख पे मारे मेख,
रख दरवाज़े दरीचे खुल्ले अदंर अपने देख
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


तेरे रंग में जो रंग जावे, साधू हो या शेख,
बीच बाज़ार में नाचे
- जमूरे देख तमाशा देख
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


ऊपर ढूँढा नीचे ढूँढा, हरी आवे हाथ,
सुमीरण कर तू सा
' कबीर कों, हर हैं तोरे साथ
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


जो कोई समज़ा मारो हेलो, लेता बस इक भेख,
एक अनेक है अनेक से फिर होता सबकुछ एक
मारो हेलो सांभळो हो जी रे
..........


- Written & Composed by 'बेशुमार'
Bhavesh N. Pattni
तारीख़ ११ अप्रैल २००९

27 September, 2009

रीत निराली


हरिहर तेरी रीत निराली,
अंबर धरती और हरियाली,
दिन में सूरज, रात को चंदा,
इस बगियन के है दो माली,
हरिहर तेरी रीत निराली


जंगल जंगल फूल बिछाये,
काँटों से फिर उन्हें बचाए
,
एक रुत आये
, एक रुत जाए,
अब मुरझाए
, तब खिल जाए,
सब रंगों का खेल रचाये
,
ऊपर मेघधनुष भी बनाये
,
एक भी कोना रहे न खाली
,
हरिहर तेरी रीत निराली


नर-नारी बीच प्रेम जगाये,
प्रेम के भी तू बीज उगाए
,
अंकुर फूटे तब समझाये
,
चक्कर तू ये कैसे चलाये
,
फसल पके दुनिया में आये
,
लालन पालन उसे कराये,
थप्पड़ कभी
, कभी दे ताली,
हरिहर तेरी रीत निराली


कल, आज और कल को बनाये,
तीनों काल पे तू ही छाये
,
भेद न इस का हमें बताये
,
कल की छाया आज पे आये
,
आज की माया कल पे ढाये
,
पाप पुन्य में करम गिनाये
,
चमड़ी गोरी हो या काली
,
हरिहर तेरी रीत निराली


- 'बेशुमार' Bhavesh N. Pattni
फरवरी २००९