29 May, 2010

कुदरत


या ईलाही, मौसम के माफिक
बदले इन्सां अपनी फ़ितरत
कुछ
भी हो फिर भी ना बदले

वही तो इन्शा-अल्लाह कुदरत
- बेशुमार