कब तक तुम्हारी बोज़िल सांसो का बोज़ लेकर फिरता रहूँगा मैं,
कब तक तुम्हारी सिसकती आँखोंमें आँसू बनकर उभरता रहूँगा मैं,
तुमसे जुदा होने के बाद अक्सर ये सोचता हूँ,
कब तक तुम्हारी यादों की आँधियों को मन ही मन में सिमटता रहूँगा मैं
- 'बेशुमार'
Beshumar Poetry 'बेशुमार के अशआर'is the Blog of my poems.
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