तेरी दुनिया चश्म होता खुश-नुमा संगम है,
खूबसूरत ख़ाब खोजे, खुद-नुमा आलम है,
दश्त-ओ-दुनिया दर-ब-दर की देखता दिन रात वो,
दायरा-ए-वक़्त के ही दरमियाँ आदम है
ज़िन्दगी और मौत का, यूँ फासला तो कम है,
रोक लूँगा हर कज़ा को, मुझ में गर ये दम है,
नब्ज़ का रुकना हमारी ज़िन्दगी का 'सम' है,
शब-सबा तेरी है खालिक़, तू ही तू हर-दम है
खल्क़ से हों इब्न रुखसत, तो ग़म-ए-मातम है,
ईद गर होती ये तेरी, आँख क्यूँ कर नम है?,
हम-नफ़स तुझसे खुदाया, तेरा ये हम-दम है,
तेरा तेरे पास आए, वो तेरी मोहर्रम है
- 'बेशुमार'' (Bhavesh N. Pattni)
Written on 18-2-2010, 20 hours 30 min., Ahmedabad on Nirmal Pandey's death
चश्म = Sight, Eye | खुश-नुमा = Happy |
खूबसूरत = Beautiful | ख़ाब = Dream |
खुद-नुमा = Self-possessed | दश्त = Dust |
दायरा- = Periphery | दायरा-ए-वक़्त = Hands of time |
आदम = First man born, man | कज़ा = Fate, jurisdiction, death |
नब्ज़ = Vein | सम = End |
ईद = Arabic – 'festivity' | शब = Night |
सबा = Morning | खालिक़, = मालिक i.e. God |
हर-दम = Every Time | मोहर्रम = The day of grief |
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