ग्यानी-ध्यानी कहेते है सब, तुझसे बड़ा न कोय,
दुनिया पीछे छोड के, फिर क्यों मनवा रोय
मिलना तो निस्चित है तुझसे आज नहीं तो काल
ना होगा तब भेद भरम, ना ही कोई सवाल
तेरे हर एक रंग-ढंग पे करिया बहोत विचार
उत्तर मिलिया एक निरंतर 'वो है अपरंपार'
नीचे से देखूं तो लागे कितना गगन विशाल
जा के उपर ग्यान हुआ, तू ही तो है 'महाकाल'
तेरे मेरे जनम की तिथि एक ही लागे मोहे
कथा सुणो भई हमरी जिसमें है ये छोटे दोहे
नाद लगा और तू भी आया, मैं भी चलिया साथ
आज भी मैंने पकड़ रखा है तेरा ही तो हाथ
तू आया तब कोई नहीं था तुझको कहेने 'तू'
मैने तब ही सोच लिया, की मैं ही ये कहे दूं
तू बैठा है जा कर उपर, दस उंगल परिमाण
मैं कहेता ये नाप-तोल कर, बात मेरी भी मान
मेरी जनमभूमि से नापु, दस उंगल ही होय
नाभि तेरा मूल-स्थान है, माने ना ये कोय
तू कहेता की जो है उपर, अंदर भी वो होत
मैं ये मानूं उपर तो है, अंदर की छब दोस्त
- 'बेशुमार'